सुरक्षा परिषद प्रस्ताव: किस देश ने क्या कहा?

सुरक्षा परिषद प्रस्ताव: किस देश ने क्या कहा?

 संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने लीबिया पर एक प्रस्ताव पारित कर 'नागरिकों और नागरिक क्षेत्रों' को कर्नल गद्दाफ़ी की फ़ौज के हमलों से बचाने के लिए सदस्य देशों को 'सभी ज़रूरी क़दम' उठाने की अनुमति दी गई है.

इस प्रस्ताव को 10-0 से पारित किया गया है. दो स्थायी सदस्यों - चीन और रूस और तीन अस्थायी सदस्यों - भारत, जर्मनी और ब्राज़ील ने इस मतदान में भाग नहीं लिया है.

सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर कुछ प्रमुख देशों का रुख़:

लीबियाई उप विदेश मंत्री ख़ालेद कायिम:

"मुझे लगता है कि इस प्रस्ताव का मक़सद देश में जंग कराना नहीं और सभी पक्षों की ओर से हिंसा रोकना है, विशेष तौर पर विद्रोहियों की ओर से, सशस्त्र क़बायलियों की ओर से लेकिन शायद इस प्रस्ताव के तकनीकी पहलुओं पर कुछ देशों से, सुरक्षा परिषद के सदस्यों से और संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षकों से बात होनी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि हम अभी भी इस बात पर बल दे रहे हैं कि तथ्य जानने के लिए जल्द से जल्द आयोग बने...ये प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से बहुत ही आक्रामक रुख़ दिखाता है जिससे लीबिया की एकता और स्थायित्व को ख़तरा है."

लीबियाई विद्रोहियों के प्रवक्ता सादोन अल-मिसराती:

"यहाँ मिसराता के लगभग सभी लोग सड़कों पर उतर आए हैं. प्रस्ताव पारित होने की ख़ुशी में जश्न मना रहे है. हम हवा में फ़ायरिंग की आवाज़ सुन रहे हैं. हम काफ़ी समय से कारों के हॉर्न सुन रहे हैं. ये गद्दाफ़ी सरकार को हटाने के लिए बहुत बड़ा क़दम है."

संयुक्त राष्ट्र में अमरीकी दूत सूज़न राइस: 

"अमरीका आज के मतदान से बहुत ख़ुश है और प्रस्ताव 1973 के कड़े प्रावधानों से भी. इस प्रस्ताव से कर्नल गद्दाफ़ी और उनकी सरकार को कड़ा संदेश जाना चाहिए. हिंसा बंद होनी चाहिए, लीबियाई जनता की रक्षा होनी चाहिए और उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए. इस प्रस्ताव के दो अहम मक़सद थे - एक तो आम नागरिकों की सुरक्षा करना और दूसरा गद्दाफ़ी सरकार पर दबाव बनाना."

संयुक्त राष्ट्र में चीन के दूत ली बाओडॉंग:

"चीन अंतरराष्ट्रीय मामलों में बल के प्रयोग के हमेशा ख़िलाफ़ रहा है. चीन को प्रस्ताव के कुछ हिस्सों पर गंभीर आपत्ति है. लेकिन चीन 22 सदस्यों वाली अरब लीग के रुख़ को बहुत महत्व देता है. वे लीबिया पर 'नो फ़्लाई ज़ोन' चाहते हैं....इस सब को ध्यान में रखते हुए चीन इस प्रस्ताव पर वोट के दौरान ग़ैर-हाज़िर रहना चाहता है."

फ़्रांस के विदेश मंत्री एलेन जूप:

"लीबिया में पिछले कई हफ़्तों से जनता की इच्छा शक्ति को कर्नल गद्दाफ़ी की ओर से दबाया जा रहा है जो अपने ही लोगों पर हमले कर रहे हैं. हम जंग के लिए उकसाने वाले इन लोगों को ऐसा नहीं करने दे सकते, हम आम नागरिकों को छोड़कर भाग नहीं सकते....हमें ज़्यादा देर नहीं करनी चाहिए."

संयुक्त राष्ट्र में रूस के दूत विताली चुर्किन:

"ये बहुत ही अफ़सोस वाला फ़ैसला है. लीबिया में रह रहे लोगों को बाहरी ताकतों के बल प्रयोग को जो परिणाम भुगतने पड़ेंगे, इसकी ज़िम्मेदारी उन लोगों के कंधों पर होगी जो ये फ़ैसला करते हैं. इस प्रस्ताव के पारित होने की सूरत में लीबियाई आम नागरिक के साथ-साथ पूरे उत्तर अफ़्रीकी और मध्य पूर्व क्षेत्र में शांति और सुरक्षा पर इसका बुरा असर होगा.


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प्रधानमंत्री की पेशकश बेमानी : भाजपा

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